Friday 19 December 2014

अरे ओ मनुष्य! अब तो जाग

गूँज रहे गगन में विनाश के राग,
मौन हुई कोयल,गा रहे काग।
डँस रहे हर ओर से काले नाग,
अरे ओ मनुष्य! अब तो जाग।।

हो रही अवनि-मेघा की कड़वी मुलाक़ात,
मच रहा कुहराम, बनने को है दिन भी रात।
पहले देता था इनका मधुर मिलन कोई मनोरम सौग़ात,
पर अब छा रहा अँधियारा,दे रोशनी की कोई तो किरण मेरे भ्रात!
अरे ओ मनुष्य! अब तो जाग।।

प्रभु कृपा से चल रही थी जब सहज प्रवृत्ति,
मनुष्य था ईश्वर की सबसे अनुपम कृति।
है यह संसार एक अमूल्य निधि,
तू बचा इसे, बना कोई शत्रुंजय विधि।।
अरे खड़ा क्यों है? बढ़ा क़दम,रक्षा को भाग। 
अरे ओ मनुष्य! अब तो जाग।।

प्रभु हैं दाता और तू याचक,
कर उनके चरणों में नमन अपना मस्तक।
परस्परावलंब के दम पर है जीता ये जग,
आवाज़ उठा,हाथ मिला और इस सृष्टि का तू बन जा रक्षक!
  खा सौगंध, फैला एकता की आग!
अरे ओ मनुष्य! अब तो जाग।।

यह देश ही है तेरी दुनिया ,
है टिका इसपर तेरा मुस्तकबिल,
जा! अपने भाइयों का हौंसला बढ़ा,
मिटाकर सारी दूरियाँ ,जा उनसे मिल।
तभी होगा तेरा उत्थान,
होगा एक जब सबका दिल।।

तो आओ गुनगुनाएँ एकता का राग,
अरे ओ मनुष्य! अब तो जाग।।
                       -ऋचा गुप्ता